Mei Zinda Hu

मै दर्दो को बाहो मे सुलाता हु,
हर पल उन्हे आँखो मे छुपाता हु,
ना रोता हु ना कभी हसता हु,
आती जाती रेहती है सांसे इस जिस्म मे शायद इसी वजह से मै जिंदा हु...।।
जो भी चाहा मैने वो बिखर गया,
जिंदगी की आग मे जलकर मै निखर गया,
जो खुद को ना समझ सका कभी वो दुनिया समझ गया,
ना चाहत रखी किसिने मेरी ना हुयी किसिको नफरत मुझसे,
गलती मेरी नही शायद कुछ तो गलत है लकीरो मे,
ऐसी लकीरो को मै कब तक मुट्टी मे दबाऊ,
आती जाती रेहती है सांसे इस जिस्म मे शायद इसी वजह से मै जिंदा हु...।।
सुकून को जब भी ढुंडता हु बैचैनीया मिल जाती है,
राहत तो शायद मुझे दुश्मन समझती है,
कैसे दिलाऊ तुझे यकीन मै ये खुदा, तेरी दियी हुयी इस जिंदगी मे मै कितना तडपता हु,
आती जाती रेहती है सांसे इस जिस्म मे शायद इसी वजह से मै जिंदा हु...।।
पर फिर भी मै हारा नही,
टुटकर गिर जाऊ कही मै कोही तारा नही,
समंदर हु मै माना खारा सही,
पर सुख जाना हालातो से हारकर मेरी ऐसी फीतरत नही,
अगर बन गया मै बुरा तो फिर केहर बरस जायेगा,
दिल नाजूक है मेरा ये भी ना सेह पायेगा,
सोचता हु हर पल बस अब यही मै कैसे जियु
आती जाती रेहती है सांसे इस जिस्म मे शायद इसी वजह से मै जिंदा हु...।।

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